पुराण
हिन्दुओं के धर्म-सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ हैं, जिनमें संसार – ऋषियों – राजाओं के वृत्तान्त आदि हैं। ये वैदिक काल के बहुत समय बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं। भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्त्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण प्राचीन भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गयी हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण दिया गया है। ‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘प्राचीन’ या ‘पुराना’।पुराणों की रचना मुख्यतः संस्कृत में हुई है, पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है। इसमें ब्रह्माण्डविद्या, देवी-देवताओं, राजाओं, नायकों, ऋषि-मुनियों की वंशावली, लोककथाएँ, तीर्थयात्रा, मन्दिर, चिकित्सा, खगोल शास्त्र, व्याकरण, खनिज विज्ञान, हास्य, प्रेमकथाओं के साथ-साथ धर्मशास्त्र और दर्शन का भी वर्णन है। कर्मकाण्ड (वेद) से ज्ञान (उपनिषद्) की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ।
अष्टादश पुराण
पुराणों की संख्या प्राचीन काल से अठारह मानी गयी है। पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रायः प्रत्येक पुराण में अठारहों पुराणों के नाम और उनकी श्लोक-संख्या का उल्लेख है। ‘विष्णुपुराण’ के अनुसार अठारह पुराणों के नाम इस प्रकार हैं —
ब्रह्म पुराण ,पद्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण ,भागवत पुराण ,नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिङ्ग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड पुराण , ब्रह्माण्ड पुराण
उपपुराण आदि पुराण (सनत्कुमार द्वारा कथित) नरसिंह पुराण नन्दिपुराण (कुमार द्वारा कथित) शिवधर्म पुराण आश्चर्य पुराण (दुर्वासा द्वारा कथित) नारदीय पुराण (नारद द्वारा कथित) कपिल पुराण मानव पुराण उशना पुराण (उशनस्) ब्रह्माण्ड पुराण वरुण पुराण कालिका पुराण माहेश्वर पुराण साम्ब पुराण सौर पुराण पाराशर पुराण (पराशरोक्त) मारीच पुराण भार्गव पुराण विष्णुधर्म पुराण बृहद्धर्म पुराण गणेश पुराण मुद्गल पुराण एकाम्र पुराण दत्त पुराण
पुराण श्लोकों की संख्या –
ब्रह्मपुराण – चौदह हजार पद्मपुराण – पचपन हजार विष्णुपुराण – तेइस हजार शिवपुराण – चौबीस हजार श्रीमद्भावतपुराण – अठारह हजार नारदपुराण – पच्चीस हजार मार्कण्डेयपुराण – नौ हजार अग्निपुराण – पन्द्रह हजार भविष्यपुराण – चौदह हजार पाँच सौ ब्रह्मवैवर्तपुराण – अठारह हजार लिंगपुराण – ग्यारह हजार वाराहपुराण – चौबीस हजार स्कन्धपुराण – इक्यासी हजार एक सौ वामनपुराण – दस हजार कूर्मपुराण – सत्रह हजार मत्सयपुराण – चौदह हजार गरुड़पुराण – उन्नीस हजार ब्रह्माण्डपुराण – बारह हजार
18 पुराण के नाम और उनका महत्त्व
ब्रह्मपुराण : इसे “आदिपुराण” भी का जाता है। प्राचीन माने गए सभी पुराणों में इसका उल्लेख है। इसमें श्लोकों की संख्या अलग- २ प्रमाणों से भिन्न-भिन्न है। 10000…12000 और 13787 ये विभिन्न संख्याएँ मिलती है। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में लोमहर्षण ऋषि ने किया था। इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न तीर्थों का विस्तार से वर्णन है। इसमें कुल 245 अध्याय हैं। इसका एक परिशिष्ट सौर उपपुराण भी है, जिसमें उडिसा के कोणार्क मन्दिर का वर्णन है।
पद्मपुराण : इसमें कुल 641 अध्याय और 48000 श्लोक हैं। मत्स्यपुराण के अनुसार इसमें 55000 और ब्रह्मपुराण के अनुसार इसमें 59000 श्लोक थे। इसमें कुल खण़्ड हैं—(क) सृष्टिखण्ड : 5 पर्व, (ख) भूमिखण्ड, (ग) स्वर्गखण्ड, (घ) पातालखण्ड और (ङ) उत्तरखण्ड। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में सूत उग्रश्रवा ने किया था। ये लोमहर्षण के पुत्र थे। इस पुराण में अनेक विषयों के साथ विष्णुभक्ति के अनेक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसका विकास 5 वीं शताब्दी माना जाता है।
विष्णुपुराण : पुराण के पाँचों लक्षण इसमें घटते हैं। इसमें विष्णु को परम देवता के रूप में निरूपित किया गया है। इसमें कुल छः खण्ड हैं, 126 अध्याय, श्लोक 23000 या 24000 या 6000 हैं। इस पुराण के प्रवक्ता पराशर ऋषि और श्रोता मैत्रेय हैं।
वायुपुराण : इसमें विशेषकर शिव का वर्णन किया गया है, अतः इस कारण इसे “शिवपुराण” भी कहा जाता है। एक शिवपुराण पृथक् भी है। इसमें 112 अध्याय, 11000 श्लोक हैं। इस पुराण का प्रचलन मगध-क्षेत्र में बहुत था। इसमें गया-माहात्म्य है। इसमें कुल चार भाग है : (क) प्रक्रियापाद – (अध्याय—1-6), (ख) उपोद्घात : (अध्याय-7-64 ), (ग) अनुषङ्गपादः–(अध्याय—65-99), (घ) उपसंहारपादः–(अध्याय—100-112)। इसमें सृष्टिक्रम, भूगो, खगोल, युगों, ऋषियों तथा तीर्थों का वर्णन एवं राजवंशों, ऋषिवंशों,, वेद की शाखाओं, संगीतशास्त्र और शिवभक्ति का विस्तृत निरूपण है। इसमें भी पुराण के पञ्चलक्षण मिलते हैं।
भागवतपुराण : यह सर्वाधिक प्रचलित पुराण है। इस पुराण का सप्ताह-वाचन-पारायण भी होता है। इसे सभी दर्शनों का सार “निगमकल्पतरोर्गलितम्” और विद्वानों का परीक्षास्थल “विद्यावतां भागवते परीक्षा” माना जाता है। इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के बारे में बताया गया है। इसमें कुल 12 स्कन्ध, 335 अध्याय और 18000 श्लोक हैं। कुछ विद्वान् इसे “देवीभागवतपुराण” भी कहते हैं, क्योंकि इसमें देवी (शक्ति) का विस्तृत वर्णन हैं। इसका रचनाकाल 6 वी शताब्दी माना जाता है।
नारद (बृहन्नारदीय) पुराण : इसे महापुराण भी कहा जाता है। इसमें पुराण के 5 लक्षण घटित नहीं होते हैं। इसमें वैष्णवों के उत्सवों और व्रतों का वर्णन है। इसमें 2 खण्ड है : (क) पूर्व खण्ड में 125 अध्याय और (ख) उत्तर-खण्ड में 82 अध्याय हैं। इसमें 18000 श्लोक हैं। इसके विषय मोक्ष, धर्म, नक्षत्र, एवं कल्प का निरूपण, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, गृहविचार, मन्त्रसिद्धि,, वर्णाश्रम-धर्म, श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि का वर्णन है।
मार्कण्डयपुराण : इसे प्राचीनतम पुराण माना जाता है। इसमें इन्द्र, अग्नि, सूर्य आदि वैदिक देवताओं का वर्णन किया गया है। इसके प्रवक्ता मार्कण्डय ऋषि और श्रोता क्रौष्टुकि शिष्य हैं। इसमें 138 अध्याय और 7000 श्लोक हैं। इसमें गृहस्थ-धर्म, श्राद्ध, दिनचर्या, नित्यकर्म, व्रत, उत्सव, अनुसूया की पतिव्रता-कथा, योग, दुर्गा-माहात्म्य आदि विषयों का वर्णन है।
अग्निपुराण : इसके प्रवक्ता अग्नि और श्रोता वसिष्ठ हैं। इसी कारण इसे अग्निपुराण कहा जाता है। इसे भारतीय संस्कृति और विद्याओं का महाकोश माना जाता है। इसमें इस समय 383 अध्याय, 11500 श्लोक हैं। इसमें विष्णु के अवतारों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राणप्रतिष्ठा आदि के अतिरिक्त भूगोल, गणित, फलित-ज्योतिष, विवाह, मृत्यु, शकुनविद्या, वास्तुविद्या, दिनचर्या, नीतिशास्त्र, युद्धविद्या, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोशनिर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन है।
भविष्यपुराण : इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है। इसमें दो खण्ड हैः–(क) पूर्वार्धः–(अध्याय—41) तथा (ख) उत्तरार्धः–(अध्याय़—171) । इसमें कुल 15000 श्लोक हैं । इसमें कुल 5 पर्व हैः–(क) ब्राह्मपर्व, (ख) विष्णुपर्व, (ग) शिवपर्व, (घ) सूर्यपर्व तथा (ङ) प्रतिसर्गपर्व। इसमें मुख्यतः ब्राह्मण-धर्म, आचार, वर्णाश्रम-धर्म आदि विषयों का वर्णन है। इसका रचनाकाल 500 ई. से 12000 ई. माना जाता है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण : यह वैष्णव पुराण है। इसमें श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन किया गया है। इसमें कुल 18000 श्लोक है और चार खण्ड हैं : (क) ब्रह्म, (ख) प्रकृति, (ग) गणेश तथा (घ) श्रीकृष्ण-जन्म।
लिङ्गपुराण : इसमें शिव की उपासना का वर्णन है। इसमें शिव के 28 अवतारों की कथाएँ दी गईं हैं। इसमें 11000 श्लोक और 163 अध्याय हैं। इसे पूर्व और उत्तर नाम से दो भागों में विभाजित किया गया है। इसका रचनाकाल आठवीं-नवीं शताब्दी माना जाता है। यह पुराण भी पुराण के लक्षणों पर खरा नहीं उतरता है।
वराहपुराण : इसमें विष्णु के वराह-अवतार का वर्णन है। पाताललोक से पृथिवी का उद्धार करके वराह ने इस पुराण का प्रवचन किया था। इसमें 24000 श्लोक सम्प्रति केवल 11000 और 217 अध्याय हैं।
स्कन्दपुराण : यह पुराण शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय, सुब्रह्मण्य) के नाम पर है। यह सबसे बडा पुराण है। इसमें कुल 81000 श्लोक हैं। इसमें दो खण्ड हैं। इसमें छः संहिताएँ हैं—सनत्कुमार, सूत, शंकर, वैष्णव, ब्राह्म तथा सौर। सूतसंहिता पर माधवाचार्य ने “तात्पर्य-दीपिका” नामक विस्तृत टीका लिखी है। इस संहिता के अन्त में दो गीताएँ भी हैं—-ब्रह्मगीता (अध्याय—12) और सूतगीताः–(अध्याय 8)। इस पुराण में सात खण्ड हैं—(क) माहेश्वर, (ख) वैष्णव, (ग) ब्रह्म, (घ) काशी, (ङ) अवन्ती, (रेवा), (च) नागर (ताप्ती) तथा (छ) प्रभास-खण्ड। काशीखण्ड में “गंगासहस्रनाम” स्तोत्र भी है। इसका रचनाकाल 7 वीं शताब्दी है। इसमें भी पुराण के 5 लक्षण का निर्देश नहीं मिलता है।
वामनपुराण : इसमें विष्णु के वामन-अवतार का वर्णन है। इसमें 95 अध्याय और 10000 श्लोक हैं। इसमें चार संहिताएँ हैं—(क) माहेश्वरी, (ख) भागवती, (ग) सौरी तथा (घ) गाणेश्वरी । इसका रचनाकाल 9 वीं से 10 वीं शताब्दी माना जाता है।
कूर्मपुराण : इसमें विष्णु के कूर्म-अवतार का वर्णन किया गया है। इसमें चार संहिताएँ हैं—(क) ब्राह्मी, (ख) भागवती, (ग) सौरा तथा (घ) वैष्णवी । सम्प्रति केवल ब्राह्मी-संहिता ही मिलती है। इसमें 6000 श्लोक हैं। इसके दो भाग हैं, जिसमें 51 और 44 अध्याय हैं। इसमें पुराण के पाँचों लक्षण मिलते हैं। इस पुराण में ईश्वरगीता और व्यासगीता भी है। इसका रचनाकाल छठी शताब्दी माना गया है।
मत्स्यपुराण : इसमें पुराण के पाँचों लक्षण घटित होते हैं। इसमें 291 अध्याय और 14000 श्लोक हैं। प्राचीन संस्करणों में 19000 श्लोक मिलते हैं। इसमें जलप्रलय का वर्णन हैं। इसमें कलियुग के राजाओं की सूची दी गई है। इसका रचनाकाल तीसरी शताब्दी माना जाता है।
गरुडपुराण : यह वैष्णवपुराण है। इसके प्रवक्ता विष्णु और श्रोता गरुड हैं, गरुड ने कश्यप को सुनाया था। इसमें विष्णुपूजा का वर्णन है। इसके दो खण्ड हैं, जिसमें पूर्वखण्ड में 229 और उत्तरखण्ड में 35 अध्याय और 18000 श्लोक हैं। इसका पूर्वखण्ड विश्वकोशात्मक माना जाता है।
ब्रह्माण्डपुराण : इसमें 109 अध्याय तथा 12000 श्लोक है। इसमें चार पाद हैं—(क) प्रक्रिया, (ख) अनुषङ्ग, (ग) उपोद्घात तथा (घ) उपसंहार । इसकी रचना 400 ई.- 600 ई. मानी जाती है।
पुराणों का काल एवं रचयिता
यद्यपि आजकल जो पुराण मिलते हैं उनमें से अधिकतर पीछे से बने हुए या प्रक्षिप्त विषयों से भरे हुए हैं तथापि पुराण बहुत प्राचीन काल से प्रचलित थे। बृहदारण्यक उपनिषद् और शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि गीली लकड़ी से जैसे धुआँ अलग अलग निकलता है वैसे ही महान भूत के निःश्वास से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वांगिरस, इतिहास, पुराणविद्या, उपनिषद, श्लोक, सूत्र, व्याख्यान और अनुव्याख्यान हुए। छान्दोग्य उपनिषद् में भी लिखा है कि इतिहास पुराण वेदों में पाँचवाँ वेद है। अत्यंत प्राचीन काल में वेदों के साथ पुराण भी प्रचलित थे ,ब्रह्मांड पुराण में लिखा है कि वेदव्यास ने एक पुराणसंहिता का संकलन किया था। इसके आगे की बात का पता विष्णु पुराण से लगता है। उसमें लिखा है कि व्यास का एक ‘लोमहर्षण’ नाम का शिष्य था जो सूति जाति का था। व्यास जी ने अपनी पुराण संहिता उसी के हाथ में दी। लोमहर्षण के छह शिष्य थे— सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णी। इनमें से अकृतव्रण, सावर्णी और शांशपायन ने लोमहर्षण से पढ़ी हुई पुराणसंहिता के आधार पर और एक एक संहिता बनाई। वेदव्यास ने जिस प्रकार मंत्रों का संग्रहकर उन का संहिताओं में विभाग किया उसी प्रकार पुराण के नाम से चले आते हुए वृत्तों का संग्रह कर पुराणसंहिता का संकलन किया।