सनातन धर्म विश्व का पहला व सबसे प्राचीन धर्म है। कुछ के मत के अनुसार यह धर्म नहीं अपितु जीवन जीने का एक साधन है। सनातन धर्म में विभिन्न देवी देवताओं की पूजा होती है और सभी देवता प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति से जुड़े होते हैं। सनातन धर्म वास्तव में प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा करने की शिक्षा देता है जो अन्य किसी धर्म में नहीं है। इसलिए हम सनातन धर्म को विज्ञान पर आधारित धर्म कहते हैं। इसलिए आज हम आपको बताते हैं कि हमारी परम्पराएँ व् हमारा धर्म पूर्णत: विज्ञान पर आधारित है जिसमे अवैज्ञानिक कुछ नहीं है।
नमस्कारः दिव्य जीवन का प्रवेशद्वार नमस्कार भारतीय़ संस्कृति का अनमोल रत्न है। नमस्कार अर्थात नमन, वंदन या प्रणाम। भारतीय संस्कृति में नमस्कार का अपना एक अलग ही स्थान और महत्त्व है। जिस प्रकार पश्चिम की संस्कृति में शेकहैण्ड (हाथ मिलाना) किया जाता है, वैसे भारतीय संस्कृति में दो हाथ जोड़कर,सिर झुका कर प्रणाम करने का प्राचीन रिवाज़ है। नमस्कार के अलग-अलग भाव और अर्थ हैं। जब तुम किसी बुजुर्ग, माता-पिता, संत-ज्ञानी-महापुरूष के समक्ष हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हो तब तुम्हारा अहंकार पिघलता है और अंतःकरण निर्मल होता है। तुम्हारा आडम्बर मिट जाता है और तुम सरल एवं सात्त्विक हो जाते हो। साथ ही साथ नमस्कार द्वारा योग मुद्रा भी हो जाती है। तुम दोनों हाथ जोड़कर उँगलियों को ललाट पर रखते हो। आँखें अर्धोन्मिलित रहती हैं, दोनों हाथ जुड़े रहते हैं एवं हृदय पर रहते हैं। यह मुद्रा तुम्हारे विचारों पर संयम, वृत्तियों पर अंकुश एवं अभिमान पर नियन्त्रण लाती है। तुम अपने व्यक्तित्व एवं अस्तित्व को विश्वास के आश्रय पर छोड़ देते हो और विश्वास पाते भी हो। नमस्कार की मुद्रा के द्वारा एकाग्रता एवं तदाकारता का अनुभव होता है। सब द्वंद्व मिट जाते हैं विनयी पुरूष सभी को प्रिय होता है। वंदन तो चंदन के समान शीतल होता है। वंदन द्वारा दोनों व्यक्ति को शांति, सुख एवं संतोष प्राप्त होता है। वायु से भी पतले एवं हवा से भी हलके होने पर ही श्रेष्ठता के सम्मुख पहुँचा जा सकता है और यह अनुभव मानों, नमस्कार की मुद्रा के द्वारा सिद्ध होता है। जब नमस्कार द्वारा अपना अहं किसी योग्य के सामने झुक जाता है, तब शरणागति एवं समर्पण-भाव भी प्रगट होता है।
चरण स्पर्श – अपने आपको विनम्र करना, भगवान से लेकर, ज्यादा उम्र के लोगों के चरण स्पर्श करने की प्रथा हिन्दुओ में सर्वप्रथम है | यह संस्कार बचपन से ही सीखा दिया जाता है| लेकिन आजकल नई पीढ़ियां संस्कारो को बोझ के रूप में लेती हैं, और वह इनको ऊपर-ऊपर से कर लेती हैं बिना इनके बारे में जाने| वैज्ञानिक तर्क के हिसाब से सभी मनुष्यों के शरीर में मस्तिष्क से लेकर पैरों तक लगातार ऊर्जा का संचार होता रहता है, इसको कॉस्मिक ऊर्जा कहते हैं, ऐसा करने से पैर छूते वक्त हम में सामने वाले की ऊर्जा का प्रवाह आता है।
व्रत करना – उपवास हिन्दू धर्म में अधितकतम लोग करते हैं, खास कर महिलायें ज्यादा व्रत रखती हैं, इसमें करवा चौथ भी आती है जिसमें महिला पूरे दिन पानी नहीं पीती| वैज्ञानिक तर्क के हिसाब से व्रत करना शरीर का पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाने में मदद करता है| इससे पाचन शक्ति में बढ़ोतरी होती है, व्रत रखने से हमारा पेट साफ़ हो जाता हैं जिससे सभी हानिकारक तत्व खत्म हो जाते हैं।
नीचे बैठकर भोजन करना – हिन्दू संस्कृति के अनुसार जमींन पर बैठकर भोजन करने को बहुत महत्व देते हैं| अब यह चलन काफी कम हो गया है, शहरों में तो लगभग यह खत्म हो गया है, लेकिन इसमें बहुत वैज्ञानिक फायदा है सिद्धः आसान यानि पालकी बनाकर बैठना, इस स्थिति में बैठकर भोजन करने से पाचन बेहतर होता है, इससे दिमाग और मन में शांति भी अनुभव होती है
कान में छेद करवाना– ये परम्परा धर्म की जातियों के हिसाब से चलती है, स्त्रियों की तरह आजकल कुछ धर्मो में पुरुष भी कान छिद्वाने लगे हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है, ठीक कान के नजदीक में एक नस होती है जो की हमारे दिमाग तक जाती हैं, कानो को छिद्वाने से इस नस में खून का बहाव बढ़ जाता है, जिससे हमारी स्मरण शक्ति बढाती हैं, इससे सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं हमारी सोचने की क्षमता में गति आती है।
मन्त्र – मन्त्र भारतीय संस्कृत का अभिन्न अंग है जिसे हम पूजा पाठ व् यज्ञ आदि के समय प्रयोग करते हैं। कई मंत्रो से मष्तिष्क शांत होता है जिससे तनाव से मुक्ति मिलती है वही ब्लडप्रेशर नियंत्रण में भी मंत्रो का प्रयोग किया जाता है
शंख – प्रत्येक धार्मिक कार्यो पर शंख बजाते हैं जो सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। शंख बजाने से जो ध्वनी निकलती है उससे सभी हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। शंख मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को भी दूर रखता है साथ ही यह कर्ण सम्बन्धी रोगों से बचाता है। शंख बजाने से श्वास सम्बन्धी रोग भी समाप्त हो जाते हैं।
तिलक – माथे के बीच में दोनों आँखों के बीच के भाग को नर्व पॉइंट बताया जाता है जिस कारण यहाँ पर तिलक लगाने से अध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है। इससे किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति बढती है। साथ ही यह मष्तिष्क में रक्त की आपूर्ति को नियंत्रण में रखता है।
तुलसी पूजन – सनातन धर्म में तुलसी को बहुत ही पवित्र माना जाता है जिसका अपना वैज्ञानिक कारण है। तुलसी अपने आप में एक उत्तम औषधि है जो कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा दिलाती है। खांसी, जुकाम और बुखार में तुलसी एक अचूक रामबाण है। तुलसी लगाने से कई हानिकारक जीवाणु और मच्छर आदि दूर रहते हैं।
पूजा – वैज्ञानिकों के प्रयोगों से सिद्ध हो चूका है कि पूरी पृथ्वी पर एकमात्र पीपल का पेड़ ही 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है। जिस कारण से पीपल का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसलिए आज भी पीपल को सींच कर उसकी परिक्रमा की जाती है। पीपल के पत्ते हृदयरोग की औषधि में भी प्रयोग होते हैं।
शिखा – आयुर्वेद के प्रसिद्ध आचार्य सुश्रुत के अनुसार, सिर का पिछला ऊपरी भाग संवेदनशील कोशिका का समूह है जिसकी सुरक्षा के लिए शिखा रखने का नियम होता है। योग क्रिया के अनुसार इस भाग में कुण्डलिनी जागरण का सातवाँ चक्र होता है जिसकी ऊर्जा शिखा रखने से एकत्रित हो जाती है।
गोमूत्र व् गाय का गोबर – गाय के मूत्र को सनातन धर्म में पवित्र माना जाता है क्यूंकि गौमूत्र कई भंयकर बीमारियों में रामबाण है। मोटापे के शिकार लोगों के लिए गौमूत्र एक अचूक दवा है साथ ही यह हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। गाय के गोबर का लेप करने से कई हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते है इसलिए पुराने समय में घरो में गोबर से घरो के फर्श लिपे जाते थे।
योग व् प्राणायाम – योग व प्राणायाम का लाभ किसी से छुपा नहीं है। योग व प्राणायाम का अविष्कार भारत के ऋषि मुनियों द्वारा समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए किया गया है। योग से स्ट्रेस व हाइपरटेंशन से मुक्ति मिलती है। मोटापे से लेकर कई जटिल बीमारियों में योग व प्राणायाम लाभकारी है। प्रतिदिन का प्राणायाम श्वास सम्बन्धी सभी रोगों से मुक्ति दिलाता है।
हल्दी – हल्दी अपने आप में एक उत्तम एंटीबायोटिक है जिसका प्रयोग दुनिया के कई देश कर चुके है और ये सिद्ध कर चुके है कि कैंसर जैसे भयंकर रोगों के उपचार में हल्दी एक अचूक औषधि है। हल्दी एक सौन्दर्यवर्धक औषधि भी है जिसका प्रयोग मुंह के दाग धब्बे हटाने व शरीर का रूप निखारने में किया जाता है इसलिए विवाह में एक रस्म हल्दी की भी होती है।
जनेऊ – जनेऊ शरीर के लिए एक्युप्रेशर का काम करता है जिससे कई प्रकार की बीमारियाँ कम होती हैं। लघु शंका के समय जनेऊ को कान पर लगा लिया जाता है जिससे लीवर और मूत्र सम्बन्धी रोग विकार दूर होते हैं।
दाह संस्कार – शव को जलाना अंतिम संस्कार का सबसे स्वच्छ उपाय है क्यूंकि इससे भूमि प्रदूषण नहीं होता। साथ ही चिता की लकड़ियों के साथ घी व अन्य सामग्री प्रयोग की जाती है जिससे वायु शुद्ध होती है। दाह संस्कार के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। एक ही स्थान पर कई दाह संस्कार किये जा सकते है। सनातन हिन्दू धर्म के साथ साथ जैन बोद्ध व सिक्ख भी इसी प्रकार से दाह संस्कार करते है !
सिंदूर – सदियों से विवाहित हिंदू महिलाएं मांग में सिंदूर लगाती रही हैं। सिर के बालों के दो हिस्से(parting) में सिंदूर लगाया जाता है। इस बिंदु को महत्वपूर्ण और संवेदनशील माना जाता है। इस जगह सिंदूर लगाने से दिमाग हमेशा सतर्क और सक्रिय रहता है। दरअसल, सिंदूर में मरकरी होता है जो अकेली ऐसी धातु है जो लिक्विड रूप में पाई जाती है। यही वजह है कि सिंदूर लगाने से शीतलता मिलती है और दिमाग तनावमुक्त रहता है। सिंदूर शादी के बाद लगाया जाता है क्योंकि माना जाता है शादी के बाद ही महिला की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और दिमाग को शांत और व्यवस्थित रखना जरूरी हो जाता है।
कांच की चूड़ियां – शादीशुदा महिलाओं का कांच की चूड़ियां पहनना शुभ माना जाता है। नई दुल्हन की चूड़ियों की खनक से उसकी मौजूदगी और आहट का एहसास होता है। लेकिन इसके पीछे एक विज्ञान छुपा है।दरअसल, कांच में सात्विक और चैतैन्य अंश प्रधान होते हैं। इस वजह से चूड़ियों के आपस में टकराने से जो आवाज़ पैदा होती है वह नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाती है।
मंगलसूत्र – माना जाता है कि मंगलसूत्र धारण करने से रक्तचाप(ब्लड प्रेशर) नियमित रहता है। कहा जाता है कि भारतीय हिंदू महिलाएं काफी शारीरिक श्रम करती हैं इसलिए उनका ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहना जरूरी है। बड़े-बुजुर्ग सलाह देते हैं कि मंगलसूत्र छिपा होना चाहिए। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि मंगलसूत्र (उसमें लगा सोना) शरीर से टच होना चाहिए ताकि वह ज्यादा से ज्यादा असर कर सके।
बिछुआ – शादीशुदा हिंदू महिलाओँ में पैरों में बिछुआ जरूर नजर आ जाता है। इसे पहनने के पीछे भी विज्ञान छिपा है। पैर की जिन उंगलियों में बिछिया पहना जाता है उसका कनेक्शन गर्भाशय और दिल से है। इन्हें पहनने से महिला को गर्भधारण करने में आसानी होती है और मासिक धर्म चक्र भी नियम से चलता है। वहीं, चांदी (आमतौर पर बिछुआ चांदी की होती है) होने की वजह से जमीन से यह ऊर्जा ग्रहण करती है और पूरे शरीर तक पहुंचाती है।
नाक की लौंग – नाक में लौंग पहने के पीछे का विज्ञान कहता है कि इससे श्वास को नियमित होती है। हाथ जोड़ना– किसी अपने से उम्र में बड़े पुरुष से मिलने के वक्त या किसी का स्वागत करते समय हिन्दू धर्म में यह हाथ जोड़ने की प्रथा होती है, यह हाथ जोड़ना सम्मान देने का प्रतीक माना जाता है | इसके पीछे यह वैज्ञानिक तर्क है कि जब हाथ जोड़ते समय सभी उँगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं, तब उन पर दबाव पड़ता है, इस दबाव को एक्युप्रेस्सुर कहते हैं इसके अनुसार, यह हमारी आँखों, दिमाग, कानों के लिए मददगार साबित होता है, और हाथ जोड़कर मिलने से हम जिस भी व्यक्ति से मिलते हैं उस मुलाक़ात की याददाश्त ज्यादा समय तक रहती है
प्रशंसनीय कदम है। इसके समुचित अध्धयन से संकीर्णता पर विराम लग सकता है।
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